
आजीवन निर्वासन – सजा ए काला पानी के दंड के बारे में प्रावधान भारतीय दंड संहिता के अध्याय – 3 ( दण्डों के विषय मे ) के धारा – 53 (दंड )मे दिया गया है इसमे कुल छः प्रकार के दंड का प्रावधान है – अपराधी इस संहिता के उपबंधों के अधीन जिन दण्डों से दण्डनीय है , वे ये है –
1. मृत्यु , (Death Punishment)
2. आजीवन कारावास (Imprisonment for Life)
3.आजीवन निर्वासन (Life Transportation) ( इसे अधिनियम संख्या 17 सन् 1949 द्वारा निकला गया था )
4. कारावास जो दो प्रकार का है –
(1) कठिन ,अर्थात कठोर श्रम के साथ (Rigorous, that is hard with labour) (2) सादा (Simple)
5. सम्पत्ति का समपहरण (Forfeiture of Property)
6.जुर्माना (Fine)
काला पानी की सजा
तो हम आजीवन निर्वासन को ही आम बोल चाल मे सजा ए काला पानी के नाम से जानते थे |सजा ए काला पानी की सजा अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में एक सेल्यूलर जेल बनाया गया था और उस जेल में लोगों को जीवन भर के लिए डाल दिया जाता था और जिस किसी को वहां भेज दिया जाता था | तो कहा जाता था की इसे सजा ए काला पानी दे दी गई है या काला पानी की सजा हो गई है | कानून मे इसका नाम आजीवन निर्वासन (Life Transportation ) था |
सेल्यूलर जेल का निर्माण
इस जेल के निर्माण का ख्याल अंग्रेजों के दिमाग में 1857 के विद्रोह के बाद आया था कुल ‘696 सेल’ वाली इस जेल का निर्माण कार्य 1896 में शुरू हुआ था और 1906 में बनकर तैयार हो गई थी |
भारत की आजादी के लिए लड़ रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को कड़ी से कड़ी यातनाएं देने के लिए अंग्रेजों ने हर कदम उठाया था | इसी कड़ी में विद्रोही लोगों को सामान्य जनमानस से दूर रखने के लिए एक ऐसी जेल बनायीं थी जो कि पूरे भारत से हटकर हो , इसी जेल का नाम है ‘सेल्यूलर जेल |

यहां जिन लोगों को सजा देकर भेजा जाता था उन्हें काला पानी की सजा दिया गया है , इसलिए कहा जाता था क्योंकि यह जेल भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी | राजधानी पोर्ट ब्लेयर मे यह जेल बनी हुई है और वहां चारों ओर पानी ही पानी भरा रहता है और यह पूरा क्षेत्र बंगाल की खाड़ी के अंतर्गत आता है |
अध्ययन से यह जानकारी भी मिलती है कि ये जो जेल थी यहां अंग्रेज सिर्फ भारतीय कैदियों को ही नहीं रखते थे बल्कि , यहां वर्मा और दूसरी जगहों से भी जो सेनानी थे उनको कैद करके लाया जाता था |
ब्रिटिश अधिकारियों के लिए पसंदीदा जगह
ब्रिटिश अधिकारियों के लिए यह जगह पसंदीदा थी , क्योंकि यह एकांत द्वीप था और यहां से निकल भागना किसी भी कैदी के लिए आसान नहीं था | एक कारण यह भी था कि न तो कोई यहां आ सकता था और न ही यहां बिना उनकी मर्जी के जा सकता था |
अंग्रेज यहा कैदियों को लाकर काम करवाते थे | सर्वप्रथम यहा 200 विद्रोहियों को अंग्रेज अधिकारी डेविड बेरी की देखरेख में लाया गया था जब हमारे देश में स्वतंत्रता का आंदोलन चरम सीमा पर था | उस समय अंग्रेजों ने बहुत सारे लोगों को काला पानी की सजा सुनाई थी जिनमें अधिकांशतह् कैदी स्वतंत्रता सेनानी थे |
इनमें सबसे बड़ा नाम विनायक दामोदर सावरकर का है जिनके ऊपर लंदन में पढ़ाई के दौरान क्रांतिकारी पुस्तकें भेजने और एक अंग्रेज अधिकारी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था और सजा भी सुनाई गई थी और उन्हें 4 जुलाई 1911 को काला पानी के लिए भेज दिया गया था |
काला पानी की सजा काटने वाले स्वतंत्रता सेनानी
वीर सावरकर के अलावा उनके बड़े भाई बाबू राम सावरकर,बटूकेश्वर दत्त ,डॉ दीवान सिंह , योगेंद्र शुक्ला, मौलाना अहमदउल्ला, मौलवी अब्दुल रहीम सदिकपुरी , भाई परमानंद , मौलाना फजल – ए हक खैराबादी , शदन चंद्र चटर्जी, सोहन सिंह , वमन राव जोशी , नंद गोपाल , महावीर सिंह आदि जैसे कई वीरो का नाम हमको इतिहास में पढ़ने के लिए मिलता है जिन्हें काला पानी के दंश को झेलना पड़ा था |

इस जेल को सेल्युलर क्यों कहा जाता था
सेल्यूलर जेल आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली थी | जिसमे कुल 696 सेल तैयार की गई थीं | यहाँ एक कैदी को दूसरे कैदी से बिलकुल अलग रख जाता था | जेल में हर कैदी के लिए अलग सेल होती थी | यहाँ पर कैदियों को एक दूसरे से अलग रखने का एक मकसद यह हो सकता है कि कैदी आपस में स्वतंत्रता आन्दोलन से जुडी कोई योजना ना बना सकें और अकेलापन के जीवन जीते जीते अन्दर से ही टूट जाएँ | ताकि वे लोग सरकार के प्रति किसी भी तरह की बगावत करने की हालत में ना रहें |

भारतीय दंड संहिता से इसे कब हटाया गया
भारत की स्वतंत्रता के बाद में भारतीय दंड संहिता मे संशोधन करके इस दंड को (अधिनियम संख्या 17 सन् 1949 द्वारा ) समाप्त कर दिया गया है | अब आजीवन निर्वासन जैसी कोई सजा भारतीय दंड संहिता मे नहीं है और इसके साथ ही समाप्त हो जाती सजा ए काला पानी |
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