नार्को टेस्ट क्या है ? :- नार्को टेस्ट (Narco Test) इसमें किसी व्यक्ति को नशीली पदार्थ दिया जाता है , जिससे वो आधी बेहोशी में हो और उससे प्रश्न पूछे जाते हैं | यह अपने आप में मुख्य साक्ष्य नहीं है , लेकिन समपोषण के लिए इसका उपयोग किया जाता रहा है |
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक जजमेंट में यह स्पष्ट कहा था कि बिना अभियुक्त के सहमति के बिना नार्को टेस्ट नहीं किया जा सकता है , अगर किया जाता है , तो ये असंविधानिक होगा | नार्को टेस्ट का सबसे पहला परीक्षण 1922 में रॉबर्ट हाउस नामक टेक्सास के डॉक्टर ने दो मुजरिमों पर किया था | नार्को टेस्ट एक ऐसा टेस्ट है , जिसमें किसी मुजरिम को आधा बेहोश करके यह जाना जाता है कि वह सच बोल रहा है या झूठ इसके लिए आरोपी को साइको एक्टिव दवा इथेनॉल , सोडियम पेंटोथोल , सोडियम अमाइटल या बार्बीचूरेट्स आदि केमिकल ड्रग्स के इंजेक्शन दिए जाते हैं , कई लोग इसको टूथ ड्रग्स भी कहते हैं |
क्योंकि यह दवा व्यक्ति को आधा बेहोश कर देती है , जिससे व्यक्ति आधी बेहोसी की स्थिति मे चला जाता है वो ना तो पूरी तरह से बेहोश होता है और ना ही पूरी तरह से होश में रहता है | जब भी हम इस प्रकार की आधी बेहोशी की हालत में होते हैं तो हम चाह कर भी झूठ नहीं बोल पाते हैं क्योंकि झूठ बोलने के लिए हमको अपने दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल करना होता है , ज्यादा सोचना होता है और कल्पनाओं का सहारा लेना पड़ता है अपनी तरफ से भी कुछ बातें जोड़नी होती है और कुछ बातें छुपानी होती है जिसके लिए हमें अपने दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल करना होता है |

नार्को परीक्षण (Narco Test) के लिए नियम और शर्तें

हमारा देश भारत में सीबीआई जांच के दौरान इंट्रावीनस बार्बीटुरेस्ट नामक दवा को (इंजेक्शन के द्वारा दी जाती है ) | नार्को टेस्ट (Narco Test) के लिए कोई सेंट्रल लॉक तो हमारा देश में नहीं है लेकिन फिर भी कोई भी सरकारी डिपार्टमेंट जैसे कि सीबीआई , पुलिस या कोई सरकारी डिपार्टमेंट बिना हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बिना किसी का नारको टेस्ट या ब्रेन मैपिंग टेस्ट नहीं कर सकता है | इसके लिए उन्हें कोर्ट से परमिशन लेनी होगी , वैसे खुद को दोषी ठहराना नेचुरल जस्टिस के अनुसार व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों का उल्लंघन है यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन है |
नार्को टेस्ट से पहले आरोपी व्यक्ति का परीक्षण किया जाता है की वह भक्ति उस टेस्ट के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ है या नहीं अगर वह शारीरिक और मानसिक रूप से ज्यादा कमजोर है , तो उस व्यक्ति का नारको टेस्ट नहीं किया जाता है जैसे – बच्चों और ज्यादा बड़े व्यक्तियों का नारको टेस्ट परीक्षण नहीं किया जाता है | नार्को टेस्ट में भी आरोपी से पूछताछ करनी होती है सबसे पहले उसकी उम्र और स्वस्था को देखा जाता है|
नार्को परीक्षण (Narco Test) करने की प्रक्रिया :-


नार्को टेस्ट करने से पहले व्यक्ति के हाथ की उंगलियों को पॉलीग्राफ मशीन से जोड़ते हैं जिसमें एक स्क्रीन लगी होती है. जिससे पहले आरोपी का blood pressure pulse breathe speed heart rate और उसके शरीर में होने वाली एक्टिविटीज को रिकॉर्ड करता है | फिर इन सब चीजों को देख कर और व्यक्ति की उम्र को देखकर उसे दवाई की डोज दी जाती है | फिर उससे आसान से सवाल पूछते हैं जैसे – कि उसका नाम परिवार के लोगों का नाम उसका पता उसका व्यवसाय उसके व्यवसाय की स्थान इत्यादि | यह पूछ कर वे उस आरोपी की मानसिक व शारीरिक स्थिति जानने की कोशिश करते हैं कि वह कितना एनर्जी लेती है और कितनी गति से रिएक्ट करती है |इसके बाद जानबूझकर आरोपी से झूठे सवाल पूछे जाते हैं, जिनका जवाब नहीं में ही दे जैसे कि आपके बच्चे एक नही दो बच्चे हैं. यह जानने के लिए कि आरोपी का शरीर झूठ सुनकर क्या प्रतिक्रिया देता है तथा जब वह सही जवाब देता है तो इसके बीच में शरीर की क्या प्रतिक्रिया और गति रहती है |
इसके बाद आरोपी से सच उगलवाने के लिए कुछ सख्त सवाल किए जाते हैं | जिसे की उसकी शारीरिक व मानसिक प्रतिक्रिया का पता चलता है अगर वह सच बोलता है तो उसकी प्रतिक्रिया पहले जैसी होगी , वरना पता चल जाएगा कि वह झूठ बोल रहा है | जरूरी नहीं है कि नार्को टेस्ट पूरी तरह से व्यक्ति की बातों की सच्चाई को जान सके | अगर आरोपी कमजोर मानसिकता या शरीर का हो या किसी बीमारी की वजह से उसका शरीर का कापता हो , दिल तेज धड़कता हो , तो मशीन गलत भी बता सकती है | कई अपराधी इतने शातिर होते हैं या फिर स्वयं मशीन पर प्रैक्टिस करके आधी बेहोशी की हालत में भी झूठ बोल जाते हैं ।
ब्रेन मैपिंग :-

ब्रेन मैपिंग इसकी खोज अमेरिकी न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर लॉरेंस ए खारवेल ने 1962 में कोलंबस स्टेट अस्पताल में की थी. यह टेस्ट नार्को टेस्ट से बिल्कुल अलग होता है |इसमें आरोपी को कंप्यूटर से जुड़ा एक तारों का हेलमेट पहनाया जाता है जिसमें सेंसर लगे होते हैं और यह सेंसर दिमाग में होने वाली हलचल को रिकॉर्ड करता है और उस हलचल को स्क्रीन पर दिखाता है |ब्रेन मैपिंग टेस्ट के दौरान आरोपी को सामने रख एक बड़ी सी स्क्रीन पर कुछ फोटो और वीडियो दिखाई जाते हैं जिनमें साधारण व्यक्तियों या पक्षियों की या अन्य फोटो वीडियो या आवाजे होती हैं |फिर उसे केस से जुड़े व्यक्तियों के फोटोग्राफ व विडिओ दिखाए जाते है | जबकि एक निर्दोष व्यक्ति जिसके लिए वह अनजान हो वह उसे पहचान नहीं पाता और ये तरंगे सकी खोज अमेरिकी न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर लॉरेंस ए खारवेल ने 1962 में कोलंबस स्टेट अस्पताल में की थी |
यह टेस्ट नार्को टेस्ट (Narco Test) से बिल्कुल अलग होता है |इसमें आरोपी को कंप्यूटर से जुड़ा एक तारों का हेलमेट पहनाया जाता है जिसमें सेंसर लगे होते हैं और यह सेंसर दिमाग में होने वाली हलचल को रिकॉर्ड करता है और उस हलचल को स्क्रीन पर दिखाता है |ब्रेन मैपिंग टेस्ट के दौरान आरोपी को सामने रख एक बड़ी सी स्क्रीन पर कुछ फोटो और वीडियो दिखाई जाते हैं जिनमें साधारण व्यक्तियों या पक्षियों की या अन्य फोटो वीडियो या आवाजे होती हैं |फिर उसे केस से जुड़े व्यक्तियों के फोटोग्राफ व विडिओ दिखाए जाते है | जबकि एक निर्दोष व्यक्ति जिसके लिए वह अनजान हो वह उसे पहचान नहीं पाता और ये तरंगे उत्पन्न नहीं होती है | इसके लिए भी कोर्ट की परमिशन की आवश्यकता है , बिना कोर्ट के परमिशन के कोई भी ब्रैन मैपिंग टेस्ट नहीं कर सकता है |